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    'धुरंधर' में जावेद खनानी बनने के लिए मिल रहीं गालियां:एक्टर अंकित सागर बोले- यह सबसे बड़ा कॉम्प्लिमेंट, लोग थप्पड़ मारने की भी बात करते हैं

    3 days ago

    फिल्म ‘धुरंधर’ ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया। शानदार कास्टिंग, रियल कैरेक्टर्स और धमाकेदार डायलॉग्स से दर्शकों का दिल जीत लिया। थिएटर्स में भीड़ उमड़ी, क्रिटिक्स की तारीफ बटोरी। इस फिल्म के हर किरदार की खूब तारीफ हो रही है, चाहे बड़ा हो या छोटा। फिल्म में जावेद खनानी का किरदार निभाने वाले एक्टर अंकित सागर ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि शोले की तरह ‘धुरंधर’ के हर किरदार हिट हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि जावेद खनानी के किरदार के लिए उन्हें गालियां मिल रही हैं, लेकिन वे इसे कॉम्प्लिमेंट मानते हैं। सवाल: फिल्म ‘धुरंधर’ में काम करने का मौका कैसे मिला? जवाब: इस फिल्म के लिए मेरी कास्टिंग मुकेश छाबड़ा ने की थी। इससे पहले मुकेश मुकेश छाबड़ा ने मेरी कास्टिंग फिल्म ‘चमकीला’ के लिए की थी। उस फिल्म का फायदा यह हुआ कि मुझे धुरंधर के लिए लुक टेस्ट के लिए बुलाया गया। ऑडिशन में मुझे जो डायलॉग दिए गए थे वो जावेद खनानी नहीं, बल्कि किसी और किरदार के थे जो किरदार धुरंधर में हैं। उस वक्त मुझे नहीं बताया गया था कि फिल्म कौन बना रहा है। शुरू में थोड़ा ऐसा एक प्रोटोकॉल होता है। सवाल: फिर कब पता चला कि इस फिल्म को आदित्य धर डायरेक्ट करने वाले हैं? जवाब: ऑडिशन के दौरान पढ़े डायलॉग्स बहुत इंटरेस्टिंग लगे, तो मेरा भी मन लगा। वरना कुछ महीने गुजर जाते और बात आगे नहीं बढ़ती। फिर छाबड़ा साहब के ऑफिस से फोन आया कि एक बार और मिलना चाहते हैं। मैं गया, तो उन्होंने कुछ सीन के वेरिएशन और एक छोटे डायलॉग पर बात की। वो पसंद आया। फिर बोले, अब आदित्य धर से मिलिए। मैं उनके ऑफिस गया। आदित्य धर बहुत अच्छे और हीरो जैसे लगे। उन्होंने मेरा बैकग्राउंड पूछा। चमकीला फिल्म देखी थी। थिएटर पर भी बात हुई, वो भी दिल्ली से थिएटर बैकग्राउंड से हैं। मैंने बताया कि मैं उनका सीनियर हूं। 19 साल की उम्र से थिएटर कर रहा हूं। सवाल: आप 'धुरंधर' से किस सेट से जुड़े, कुछ खास यादें वो थोड़ा बताइए। जवाब: 'धुरंधर' के सेट से जुड़ना यादगार रहा। डायरेक्टर धर साहब ने पहले ही बता दिया कि ये रियल कैरेक्टर है, गूगल कर लो। स्क्रिप्ट इतनी शानदार थी कि ऑफिस में 4 घंटे लगातार पढ़ी, बीच में सिर्फ कॉफी और वॉशरूम ब्रेक लिया। रणवीर सिंह, संजय दत्त, आर माधवन, राकेश बेदी साहब जैसे को-स्टार्स के साथ काम करना मजेदार था। सेट पर हर किरदार को देखकर फिल्म ‘शोले’ की याद आ गई। जिस तरह से उस फिल्म के छोटे- बड़े सभी किरदार हिट थे, वैसे ही इस फिल्म के सभी किरदारों की खूब चर्चा हो रही है। राकेश बेदी साहब के साथ पहले भी काम कर चुका हूं, पुरानी यादें ताजा हो गईं। इस फिल्म की सक्सेस देख कर मुझे पेरेंट्स की बात याद आ गई। पिताजी ने कहा था- 'टिकना है तो लाइन में लगे रहो, पीछे मत हटना। मौके खुद-ब-खुद मिलेंगे।' मां कहती थीं- 'खड़े होने की जगह मिल गई, तो बैठने की भी मिल जाएगी। सवाल: आपके रोल को लेकर क्रिटिक्स और को-स्टार्स की क्या प्रतिक्रिया रही? जवाब: कुछ एक्टर्स ने गालियां भी दीं, लेकिन वो कॉम्प्लिमेंट था। पुराने दोस्त एक्टर्स भी कहते हैं, 'गुरु घंटाल हो तुम। क्रिटिक्स कोमल नहाटा ने मेरे काम को सराहा। वह कहते हैं कि अंकित ने जावेद का रोल किया, देखकर लगा दो थप्पड़ मार दूं। इससे बड़ा कॉम्प्लिमेंट किसी एक्टर के लिए और क्या होगा। सवाल: 'धुरंधर' से पहले और प्रमुख फिल्में कौन-कौन सी रहीं, उसके बारे में थोड़ा बताएं? जवाब: 2006 के बाद मैंने फिल्में शुरू कीं। सबसे पहले 'मारुति मेरा दोस्त' में मेरा अच्छा रोल था, जो लोगों को पसंद आया। ये उस समय की बड़ी फिल्म थी, अच्छे प्रोडक्शन वैल्यू के साथ। फिर 'हाइजेक' आई, जहां मुकेश छाबड़ा साहब ने मुझे रिकमेंड किया। उन्होंने मेरा स्प्राइट ऐड देखा था, जो उनके दिमाग में बैठ गया। उसके बाद 'नो वन किल्ड जेसिका' में मेरा साइलेंट कैरेक्टर था। एक मामा का रोल, जो मर्डरर लड़के को बचाने वाला था। बाद में मुकेश छाबड़ा साहब ने 'तीन' में बुलाया। कोलकाता शूटिंग में नवाज के साथ सीन थे। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, विद्या बालन के साथ। राणा दग्गुबाती और पुलकित सम्राट की फिल्म 'हाथी मेरे साथी' में काम किया। 'चमकीला' के बाद 'धुरंधर' मिली। चमकीला ने मेरी पॉलिश चमकाई। हमेशा अच्छे कैरेक्टर चुनता रहा, चाहे छोटे हों। सवाल: आपकी एक्टिंग जर्नी की शुरुआत कहाँ से और कैसे हुई, इसके बारे में कुछ बताएं? जवाब: मेरी एक्टिंग की शुरुआत स्कूल के दिनों से हुई। कार्यक्रमों में हमेशा ड्रामा करता था। असल जर्नी 1983 में दिल्ली के मंडी हाउस से शुरू हुई। वहां कमानी ऑडिटोरियम में मेरा पहला नाटक 'हमीदा बाई की कोठी' किया, जो विजय बरवे का फेमस प्ले है। कबीर बेदी जैसे कलाकार भी वह नाटक कर चुके हैं। उस वक्त मंडी हाउस में जुझारू कलाकारों की भरमार थी। थिएटर करने वाले, एनएसडी वाले सब एक साथ थे। फ्रीलांसर्स भी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ सकते थे, कोई रोक-टोक नहीं। मैं भी उनमें से एक था। इरफान खान फर्स्ट ईयर में थे (82-83), तिग्मांशु धूलिया, पीयूष मिश्रा भी। सीनियर्स में एनके शर्मा, मनोज वाजपेयी, सौरभ शुक्ला, विजय राज, मनोज पावा, वीरेंद्र सक्सेना। एनएसडी रिपर्टरी में रघुबीर यादव, गोविंद नामदेव, सीमा बिस्वास जैसे शानदार एक्टर्स थे। इन सबके साथ बैठना-बात करना गजब की एनर्जी देता था। सवाल: कितने समय आपने थिएटर किया दिल्ली में? फिर मुंबई कब आए? जवाब: जी, 1983 में मंडी हाउस से पहला नाटक किया। उसके बाद 6-7 साल तक लगातार थिएटर करता रहा। पेरेंट्स की परमिशन थी। पिताजी दिल्ली में डेंटिस्ट थे। बोर्ड एग्जाम से पहले उन्होंने पूछा कि साइंस लूंगा या आर्ट्स? मैंने कहा, "आप डॉक्टर हैं, मैं एक्टर बनना चाहता हूँ।" वो बोले, "करना है तो करो, पीछे मुड़ना मत। मेहनत करो तो नाकामी भी कामयाबी बन जाएगी।" फिर 84-85 में FTII पुणे गया, लेकिन एक्टिंग कोर्स बंद हो चुका था। NSD की कोशिश नहीं की, क्योंकि कॉम्पिटिशन बहुत था। हर स्टेट से सिर्फ एक सीट। 86 में मुंबई होकर गया, लेकिन 89 में अप्रेंटिसशिप के लिए स्थायी रूप से आया। शेखर कपूर, देव आनंद और सतीश कौशिक जैसे डायरेक्टर्स के साथ काम करना चाहता था। सतीश कौशिक को 'रूप की रानी चोरों का राजा' में असिस्ट करने का मौका भी मिला। सवाल: एक्टिंग में कब शुरुआत हुई? मतलब एक्टर बनना तो टारगेट था, लेकिन डायरेक्शन सीखने का मौका सतीश कौशिक के साथ मिला। कितने समय तक रहे? जवाब: सतीश कौशिक जी के साथ सात-आठ महीने रहा उनकी फिल्म पर। कई शेड्यूल शूट किए। उसके बाद मुंबई में एक्टिंग की शुरुआत हुई। हालांकि 1989 से पहले दिल्ली में दूरदर्शन के सीरियल्स किए थे, इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर्स के साथ, जैसे अभिनव चतुर्वेदी का प्रोडक्शन। वहां लीड रोल्स किए। मुंबई आकर सतीश जी की अगली फिल्म 'प्रेम' से नहीं जुड़ पाया। दिल्ली गया तो हादसे की वजह से लेट हो गया। सतीश जी नाराज भी बहुत हुए कि इतने दिनों तक कहां गायब था। खैर, उसी दौरान मेरे दोस्त संजीव दत्ता ने एक डायरेक्टर दोस्त से मिलवाया। उन्होंने दूरदर्शन सीरियल 'विलायती बाबू' पिच किया, जिसे अर्जुन कपूर की मां मोना कपूर ने प्रोड्यूस किया। उसमें शेखर सुमन जैसे बड़े स्टार्स थे। मैंने उसमे राकेश बेदी के साथ भैकूराम हवलदार का रोल निभाया था। फर्स्ट डे शूट पर राकेश जी से मिला, उनका फैन था। डिनर ब्रेक में राकेश भाई ने कहा कि मैं एक सीरियल कर रहा हूं। अर्चना पूरण सिंह डायरेक्टर हैं। उसमें छोटे भाई का बड़ा रोल है। तुम उनसे मिल लेना। सवाल: अर्चना पूरण सिंह वाला कौन सा सीरियल था?​​ जवाब: सिनेविस्टा प्रोडक्शन का कॉमेडी शो "जाने भी दो पारो" था। उस सीरियल के 4-5वें एपिसोड शूट हो चुके थे।​ अर्चना जी ने लोखंडवाला के बंगले पर बुलाया। देवर-भाभी का सीन दिया, जहां वो भाभी बनीं और डायरेक्टर भी। मैं बिहार से आया देवर बना, कैमरे पर ऑडिशन हो गया।​ 30-35 सेकंड की मीटिंग के बाद अर्चना जी ने कहा, "गुड अंकित, तुम्हें ये सेकंड लीड रोल मिल गया। सवाल: 'जाने भी दो पारो' के बाद और कौन-कौन से शो किए? जवाब: उसके बाद सिनेविस्टा के ही शो 'नहले पे दहला' किया, जिसमें सतीश शाह, शेखर सुमन, राकेश बेदी और सुप्रिया पिलगांवकर थे। मैं सेकंड लीड में था, 52 एपिसोड्स चले। फिर तीसरा शो 'जिंदगी मिलके बिताएंगे' राज सिप्पी के निर्देशन में, जिसमें पेंटल-गुडी मारुती मेरे माता-पिता बने और किरण कुमार लीड में थे। 2000-01 तक 'जिंदगी मिलके बिताएंगे' किया, फिर लाइफ की कुछ परिस्थितियों से ब्रेक लेना पड़ा। 2006 के आसपास वापसी हुई, तो कास्टिंग डायरेक्टर जोगी ने स्प्राइट ऐड के लिए बुलाया, अमित शर्मा ने डायरेक्ट किया। ये हिट हुआ, फिर 15-20 ऐड्स लीड में किए। पीयूष पांडे के साथ इंडियन रेलवे का 'रेलगाड़ी छिक-छिक' ऐड कोलकाता में शूट किया, बहुत पॉपुलर हुआ। गजराज राव, सुजीत सरकार जैसे थिएटर के दोस्तों से भी कई ऐड मिले।​
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