SEARCH

    Language Settings
    Select Website Language

    GDPR Compliance

    We use cookies to ensure you get the best experience on our website. By continuing to use our site, you accept our use of cookies, Privacy Policies, and Terms of Service.

    dailyadda

    Exclusive: आरबीआई की मोनेटरी कमेटी के एक ऐलान भर से क्यों नाचने लग जाता है पूरा बाजार

    1 week ago

    RBI Monetary Policy Committee: आरबीआई की मोनेटरी कमेटी (MPC) की बैठक और उसके नीतिगत फैसले हर दो महीने में लिए जाते हैं, जिनका सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था, बाज़ार और आम लोगों पर पड़ता है. केंद्रीय बैंक का लक्ष्य महंगाई को नियंत्रित रखने, रुपये की स्थिरता सुनिश्चित करने और आर्थिक गति को बनाए रखना होता है. एमपीसी में कुल छह सदस्य होते हैं—तीन आरबीआई की ओर से और तीन केंद्र सरकार द्वारा नामित. इसका मुख्य उद्देश्य महंगाई को औसतन 4 प्रतिशत के दायरे में रखना है.

    क्या काम करती है एमपीसी?

    अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि एमपीसी की बैठक में लिए गए फैसले बाज़ार और कर्ज से लेकर ईएमआई व रोजगार तक को कैसे प्रभावित कर देते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. आस्था अहूजा बताती हैं कि जब केंद्रीय बैंक पॉलिसी बनाता है, तो इसका सीधा असर ब्याज दरों, बाजार में उपलब्ध तरलता (लिक्विडिटी) और निवेशकों की भावनाओं पर पड़ता है. ब्याज दरों में बदलाव मूल रूप से रेपो रेट के उतार-चढ़ाव पर आधारित होता है.

    हाल में आरबीआई ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है, जिससे यह 5.25 प्रतिशत पर आ गया. इससे उधारी सस्ती होती है और उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ती है, जिससे निवेश और मांग को प्रोत्साहन मिलता है. हालांकि, ऐसी स्थिति में पूंजी बहिर्गमन (कैपिटल आउटफ्लो) का जोखिम बढ़ सकता है, क्योंकि विदेशी बाजारों में ब्याज दरें अधिक हैं. इसका असर रुपये, महंगाई और भुगतान संतुलन (BOP) पर पड़ता है. फिलहाल रुपया पहले ही डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 90 के पार जा चुका है.

    कैसे हर सेक्टर्स प्रभावित?

    स्टॉक मार्केट की बात करें तो लार्ज-कैप शेयर अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि मिड-कैप और स्मॉल-कैप दबाव में हैं. इसकी वजह मांग में कमी है. आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि कैपेसिटी यूटिलाइजेशन 75.8 प्रतिशत पर है, यानी अर्थव्यवस्था में निजी निवेश की रफ्तार कमजोर है. ऐसे में केवल रेपो रेट कम करने से निवेश तेजी से नहीं बढ़ पाएगा, जब तक कि घरेलू मांग में इजाफा न हो. मांग बढ़ने के लिए सरकार की राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है.

    भारत में आमदनी और बचत का ढांचा भी निवेश को प्रभावित करता है. देश में केवल 8–9 प्रतिशत लोग ही पर्याप्त बचत कर पाते हैं, जिनमें अधिकांश अपर-मिडिल और रिच क्लास शामिल हैं. मिडिल और लो-मिडिल क्लास की बचत बहुत कम है, जिसके कारण बड़ी मात्रा में बचत म्यूचुअल फंड और स्टॉक मार्केट में जाती है, खासकर तब जब फिक्स्ड इनकम पर रिटर्न अनिश्चित हो.

    ये भी पढ़ें: यूएस हाई टैरिफ के बीच चीन ने किया कमाल, 11 महीने में पहली बार बनाया ये रिकॉर्ड, परेशान होंगे ट्रंप

    Click here to Read More
    Previous Article
    2026 में वृश्चिक छात्रों का बढ़ेगा कॉन्फिडेंस और मिलेगी सफलता! जानें क्या मेहनत रंग लाएगी
    Next Article
    पाकिस्तान को IMF से मिला बड़ा सहारा, 1.2 अरब डॉलर की नई लोन सहायता को मंजूरी

    Related बिजनेस Updates:

    Comments (0)

      Leave a Comment