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    देश के मेडिकल कॉलेजों में खाली सीटों का खुलासा, जानें कितनी हैं MBBS में खाली सीटें?

    3 days ago

    केंद्र सरकार ने हाल ही में जानकारी दी है कि शैक्षणिक वर्ष 2025-26 में देश में एमबीबीएस और मेडिकल पीजी की सीटों की कुल संख्या कितनी है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया कि इस साल देश में कुल 1,28,875 एमबीबीएस सीटें हैं, जिनमें से 65,193 सरकारी और 63,682 प्राइवेट कॉलेजों की हैं. चार राउंड की ऑल इंडिया काउंसलिंग के बाद भी 72 सीटें खाली रह गई हैं. इनमें 26 सरकारी और 46 डीम्ड यूनिवर्सिटी की सीटें शामिल हैं.

    मेडिकल पीजी में कुल 80,291 सीटें हैं, जिनमें 17,707 डीएनबी, डीआरएनबी, एफएनबी और पोस्ट एमबीबीएस डिप्लोमा सीटें भी शामिल हैं. यह जानकारी राज्य मंत्री ने सांसद भाऊसाहेब राजाराम वाकचौरे के सवालों के जवाब में दी. वाकचौरे ने पूछा था कि देश में सरकारी और गैर-सरकारी मेडिकल कॉलेजों में विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए कुल सीटें कितनी हैं, अब तक कितने आवेदन आए हैं, कितनी सीटें खाली हैं और उन्हें भरने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं.

    राज्यवार एमबीबीएस सीटें

    आंध्र प्रदेश में 3,415 सरकारी और 3,800 प्राइवेट सीटें हैं. असम में 1,975 सरकारी सीटें हैं और कोई प्राइवेट सीट नहीं. बिहार में 1,645 सरकारी और 1,900 प्राइवेट सीटें हैं. दिल्ली में 1,296 सरकारी और 100 प्राइवेट सीटें हैं. तमिलनाडु में 5,250 सरकारी और 7,800 प्राइवेट सीटें हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 5,925 सरकारी और 7,500 प्राइवेट सीटें उपलब्ध हैं. अन्य राज्यों में भी सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की सीटों का वितरण अलग-अलग है.

    कुल मिलाकर 65,193 सरकारी और 63,682 प्राइवेट सीटें हैं. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि देश में मेडिकल शिक्षा का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन कुछ राज्यों में अभी भी कई सीटें खाली हैं.

    आगामी वर्षों में प्रवेश परीक्षाओं में बदलाव की तैयारी

    कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता कम करने और डमी स्कूलों की समस्या खत्म करने के लिए केंद्र सरकार बड़े बदलावों पर विचार कर रही है. शिक्षा मंत्रालय की समिति ने सुझाव दिए हैं कि जेईई मेन, नीट और सीयूईटी जैसी प्रवेश परीक्षाएं कक्षा 11वीं में ही कराई जा सकती हैं. इस पहल का मकसद छात्रों पर होने वाले अकादमिक दबाव को कम करना है.

    समिति ने यह भी विचार किया है कि कोचिंग पढ़ाई 2-3 घंटे तक सीमित की जाए और बोर्ड परीक्षा के अंक प्रवेश परीक्षा के नतीजों के साथ जोड़े जाएं. इस तरह से न सिर्फ छात्रों पर मानसिक दबाव कम होगा, बल्कि क्लासरूम लर्निंग भी मजबूत होगी.

    समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार साल में दो बार प्रवेश परीक्षा कराने पर भी चर्चा की. यानी अप्रैल और नवंबर में एंट्रेंस एग्जाम. इसके अलावा एक हाइब्रिड असेसमेंट मॉडल पर भी विचार हो रहा है जिसमें बोर्ड परीक्षा के मार्क्स और एप्टीट्यूड टेस्ट दोनों को वेटेज दिया जाएगा. इससे यह सुनिश्चित होगा कि छात्र सिर्फ कोचिंग पर निर्भर न हों और उनकी क्लासरूम पढ़ाई का मूल्यांकन भी हो.

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